मानवीय सम्बन्ध से सम्बंधित भाव और उनके कारक
हमारे जीवन के मानवीय सम्बन्ध जैसे माता-पिता, भाई-बहन इत्यादि का भी
आकलन जन्मकुंडली के माध्यम से किया जा सकता है | जन्मकुंडली में किसी सम्बन्धी का
विचार करते समय, हमें उस सम्बन्धी के भाव के अलावा उसके कारक ग्रह का भी मूल्यांकन
करना चाहिए |
उदाहरण : यदि हमें किसी जातक की जन्मकुंडली देख कर उसकी माता के
सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करनी हो तो हमें माता से सम्बंधित भाव (सप्तम भाव )
के साथ – साथ माता के कारक ( चन्द्र ) की जन्मकुंडली में स्थिति का भी आकलन करना
चाहिये | ज्योतिष का एक सूत्र सदेव याद रखना चाहिए कि भाव की अपेक्षा ग्रहों का कारकत्व
अधिक महत्त्व रखता है |
उदाहरण कुण्डली
माना हमें दी गई कुंडली में माता के सम्बन्ध में विचार करना है इसलिए
हम सबसे पहले चोथे भाव पर विचार करेंगे | चोथे भाव में गुरु विराजमान है और यह
सर्विदित है कि गुरु जिस भाव में होते है उस भाव की वृद्धि करते है अब इस प्रकार
से देखे तो गुरु का चोथे भाव में होना माताओं की संख्या में वृद्धि करेगा अर्थात
गुरु का प्रभाव यहाँ नकारात्मक है | परन्तु ऐसा नहीं कि सोतेली माता सदेव दुःख ही
देती हो | संभव है वो वास्तविक माता से अधिक प्यार करने वाली हो | अब चलते है माता
के कारक चन्द्र की स्थिति देखने की लिये | चन्द्र इस कुंडली के नवम भाव में केतु
के साथ स्थित है और उस पर राहू की सप्तम दृष्टि है | इसके अतिरिक्त चन्द्र पर मंगल
की अष्टम और शनि की तीसरी दृष्टि भी है | इस प्रकार चन्द्र चार नकारात्मक ग्रहों
(राहू, केतु, मंगल, शनि) के प्रभाव में है अर्थात माता का कारक चन्द्र जन्मकुंडली
में अत्यंत दयनीय स्थिति में है | शनि का प्रभाव चोथे भाव पर भी है | यदि और
सूक्ष्म विवेचना की जाये तो चन्द्र भरणी नक्षत्र में स्थित है जिसका स्वामी शुक्र
उस राशी का स्वामी है जिसमे राहू स्थित है | इस प्रकार चोथे भाव की तुलना में माता
का कारक चन्द्र इस कुंडली में बहुत अधिक पीड़ित है | अत: हम निश्चित रूप से कह सकते
है कि जातक को माता का सुख प्राप्त होने में संदेह है | वास्तव में इस जातक की
माता का देहांत जातक के जन्म के कुछ दिन बाद ही हो गया था |
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