Sunday, September 25, 2016

जेमिनी सूत्र के अनुसार आयु निर्णय



जेमिनी सूत्र के अनुसार जातक की दीर्घायु, मध्यायु, अल्पायु का विचार करने के लिए लग्नेश और अष्टमेश की जन्मकुंडली में स्थिति का अवलोकन करना चाहिए 

दीर्घायु योग

1.     अगर लग्नेश और अष्टमेश दोनों चर राशियों में हो |

2.     अगर लग्नेश स्थिर और अष्टमेश द्विस्वभाव राशि में हो |

3.     यदि लग्नेश द्विस्वभाव राशि और अष्टमेश स्थिर राशि में हो

उपरोक्त स्थिति में जातक में दीर्घायु होने की सम्भावना होती है |

मध्यायु योग

1.     अगर लग्नेश और अष्टमेश दोनों द्विस्वभाव राशि में हो |

2.     लग्नेश चर और अष्टमेश स्थिर राशि में हो |

3.     लग्नेश स्थिर और अष्टमेश चर राशि में हो
    
   उपरोक्त स्थिति में जातक में मध्यायु होने की सम्भावना होती है |

अल्पायु योग

1.     अगर लग्नेश और अष्टमेश दोनों स्थिर राशि में हो |

2.     अगर लग्नेश चर और अष्टमेश द्विस्वभाव राशि में हो |

3.     अगर लग्नेश द्विस्वभाव और अष्टमेश चर राशि में हो

उपरोक्त स्थिति में जातक में अल्पायु होने की सम्भावना होती है |

नोट : लग्नकुंडली के साथ – साथ चन्द्रकुंडली से उपरोक्त सूत्रों का अवलोकन करके ही अंतिम निर्णय पर पहुचना चाहिए | 

Sunday, September 18, 2016

मानवीय सम्बन्ध से सम्बंधित भाव और उनके कारक

मानवीय सम्बन्ध से सम्बंधित भाव और उनके कारक

हमारे जीवन के मानवीय सम्बन्ध जैसे माता-पिता, भाई-बहन इत्यादि का भी आकलन जन्मकुंडली के माध्यम से किया जा सकता है | जन्मकुंडली में किसी सम्बन्धी का विचार करते समय, हमें उस सम्बन्धी के भाव के अलावा उसके कारक ग्रह का भी मूल्यांकन करना चाहिए | 

उदाहरण : यदि हमें किसी जातक की जन्मकुंडली देख कर उसकी माता के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करनी हो तो हमें माता से सम्बंधित भाव (सप्तम भाव ) के साथ – साथ माता के कारक ( चन्द्र ) की जन्मकुंडली में स्थिति का भी आकलन करना चाहिये | ज्योतिष का एक सूत्र सदेव याद रखना चाहिए कि भाव की अपेक्षा ग्रहों का कारकत्व अधिक महत्त्व रखता है |

उदाहरण कुण्डली





माना हमें दी गई कुंडली में माता के सम्बन्ध में विचार करना है इसलिए हम सबसे पहले चोथे भाव पर विचार करेंगे | चोथे भाव में गुरु विराजमान है और यह सर्विदित है कि गुरु जिस भाव में होते है उस भाव की वृद्धि करते है अब इस प्रकार से देखे तो गुरु का चोथे भाव में होना माताओं की संख्या में वृद्धि करेगा अर्थात गुरु का प्रभाव यहाँ नकारात्मक है | परन्तु ऐसा नहीं कि सोतेली माता सदेव दुःख ही देती हो | संभव है वो वास्तविक माता से अधिक प्यार करने वाली हो | अब चलते है माता के कारक चन्द्र की स्थिति देखने की लिये | चन्द्र इस कुंडली के नवम भाव में केतु के साथ स्थित है और उस पर राहू की सप्तम दृष्टि है | इसके अतिरिक्त चन्द्र पर मंगल की अष्टम और शनि की तीसरी दृष्टि भी है | इस प्रकार चन्द्र चार नकारात्मक ग्रहों (राहू, केतु, मंगल, शनि) के प्रभाव में है अर्थात माता का कारक चन्द्र जन्मकुंडली में अत्यंत दयनीय स्थिति में है | शनि का प्रभाव चोथे भाव पर भी है | यदि और सूक्ष्म विवेचना की जाये तो चन्द्र भरणी नक्षत्र में स्थित है जिसका स्वामी शुक्र उस राशी का स्वामी है जिसमे राहू स्थित है | इस प्रकार चोथे भाव की तुलना में माता का कारक चन्द्र इस कुंडली में बहुत अधिक पीड़ित है | अत: हम निश्चित रूप से कह सकते है कि जातक को माता का सुख प्राप्त होने में संदेह है | वास्तव में इस जातक की माता का देहांत जातक के जन्म के कुछ दिन बाद ही हो गया था |

Thursday, September 15, 2016

अष्टकूट मिलान में नाड़ी का महत्व

अष्टकूट मिलान में नाड़ी का महत्व

नाडिया तीन मानी गई है
1 – आदि
2 – मध्य
3 – अन्त्य

आदि नाड़ी वाला व्यक्ति वायु तत्व की प्रधानता वाला होता है और उसमे चंचलता का गुण पाया जाता है | मध्य नाड़ी वाला व्यक्ति पित्त प्रधान होता है और उसके स्वाभाव में उष्णता पाई जाती है | जबकि अन्त्य नाड़ी वाला व्यक्ति कफ प्रधान होता है और उसमे शीतलता का गुण पाया जाता है |

नाड़ी को गुण मिलान में सर्वाधिक 8 अंक दिए गए है | गुण मिलान में वर – वधु की नाडिया भिन्न होनी चाहिये | एक समान नाडिया होने पर विवाह नहीं करना चाहिए | यदि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष (वर-वधु की नाड़ी का समान होना ) हो तो भावी दम्पति को शारीरिक सम्बन्ध बनाने और संतान उत्पन करने में दिक्कत हो सकती है | 


समान नाड़ी मिलान लगभग उसी तरह होता है जैसे चुम्बक के दो समान ध्रुव एक – दुसरे को प्रतिकर्षित करते है इस प्रकार समान नाड़ी होने पर वर-वधु एक दुसरे से दूर-दूर रहना अधिक पसंद करते है | इसलिए यदि अष्टकूट मिलान करते समय 28 गुण मिलने पर भी यदि नाड़ी दोष पाया जाये तो बुद्धिमान ज्योतिषी को जातक को विवाह करने की सलाह नहीं देनी चाहिए, जब तक नाड़ी दोष का परिहार ना हो जाये |

नाड़ी दोष का परिहार

1 – यदि वर – कन्या दोनों की राशी एक हो परन्तु नक्षत्र भिन्न हो तो नाड़ी दोष का परिहार माना जाता है |

2 – यदि वर – कन्या दोनों की राशी भिन्न हो परन्तु नक्षत्र समान हो तो नाड़ी दोष का परिहार माना जाता है |

Tuesday, September 13, 2016

शिक्षा सम्बन्धी परामर्श

जन्मकुंडली के अनुसार शिक्षा सम्बन्धी परामर्श
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी जातक की शिक्षा का आकलन करने के लिए कुंडली में निम्न तत्वों का अध्ययन करना चाहिये
शिक्षा से जुड़े भाव
कुंडली के दुसरे, चोथे और पांचवे भाव को जातक की शिक्षा से सम्बंधित माना जाता है | इनमे दूसरा भाव कुटुम्ब स्थान होता है इसलिए यह भाव जातक को परिवार से प्राप्त होने वाली शिक्षा का निर्धारण करता है दुसरे भाव से ही जातक के पारिवारिक संस्कारो का बोध होता है चोथा भाव सुख स्थान होता है और हम सब जानते है कि व्यक्ति के बचपन के दिन उसके जीवन के सबसे अधिक सुख के दिन होते है इसलिए चोथा भाव उस शिक्षा को व्यक्त करता है जो जातक अपने बचपन में (क्लास 1 से क्लास 10 ) प्राप्त करता है कुंडली का पंचम भाव उस शिक्षा को व्यक्त करता है जो जातक की आजीविका (नौकरी, व्यवसाय ) के लिए उपयोगी हो |
शिक्षा प्रदान करने वाले ग्रह
बुद्धि और ज्ञान के कारक क्रमश: बुध और गुरु कहे गए है | अच्छी शिक्षा वास्तव में बुद्धि और ज्ञान का संगम है | इसलिए जन्मकुंडली में इन दोनों ग्रहों का बलशाली होना, जातक की अच्छी शिक्षा का परिचायक होता है |
शिक्षा को बल प्रदान करने वाले योग
जन्मकुंडली में निम्न योगो की उपस्थिति जातक की शिक्षा को बल प्रदान करती है
1.     बुध-आदित्य योग
2.     शंख योग
3.     सरस्वती योग
4.     गुरु-शुक्र योग
5.     मंगल-गुरु योग
दशा तथा गोचर
कई बार देखने में आता है कि बहुत अच्छे योग होने के बाद भी जातक को उसके उतने अच्छे परिणाम नहीं मिल पाते जितने मिलने चाहिए थे | इसका मुख्य कारण उचित आयु में उचित दशा और गोचर का ना होना होता है | अत: कुंडली का अवलोकन करते समय यह जरुर देख लेना चाहिए कि जातक इतना भाग्यशाली जरुर हो कि उचित आयु आने पर जातक की कुंडली में उपलब्ध योगो को उचित दशा और गोचर की सहायता से फलने –फूलने का अवसर प्राप्त हो | शिक्षा के लिए लग्नेश, चतुर्थेश, पंचमेश, नवमेश और दशमेश की दशा उत्तम मानी गयी है |



Tuesday, April 19, 2016

भाग्य बाधा दूर करने के लिए सरल उपाय

मै आपको कुछ ऐसे सरल उपाय बता रहा हूँ जिनको करने से आप अपने भाग्य में आने वाले समस्त अवरोध दूर कर सकते है ! यह उपाय भी बहुत सरल परन्तु अत्यधिक प्रभावी है। आप जब भी ये उपाय करें तो पूर्ण विश्वास से करें !
पहला उपाय :
नियमित रूप से प्रात काल मानसिक रूप से आप श्री कृष्ण भगवान का ध्यान करते हुए पांच बार क्लीं वासुदेवाय नमः का जाप करके आप अपनी भाग्यबाधा दूर कर सकते है !
दूसरा उपाय :
शुक्लपक्ष के प्रथम शनिवार को आप संध्याकाल में उड़द की दाल का एक पापड लेकर उस पर सरसों का तेल लगाकर थोडा सा दही रखें और और दही पर सिन्दूर छिड़क कर पीपल वृक्ष के निचे रख आयें ! ऐसा आप 11 शनिवार करें।

Sunday, April 3, 2016

शनिवार को करने वाले साधारण उपाय




  1. शनिवार के दिन किसी भी चीज के बुरे फल को दूर करने के लिए काली चीजों जैसे उड़द की दाल, काला कपड़ा, काले तिल और काले चने को किसी गरीब को दान देने से शनिदेव की कृपा बनी रहती है।
  2. शनिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का चोमुखा दीपक जलाने से धन, यश, लक्ष्मी और वैभव की वृद्धि होती है | नौकरी में उन्नति होती है | 
  3. शनिवार के दिन पीपल के नीचे बैठ कर पहले हनुमान चालीसा फिर भैरव चालीसा और इसके बाद शनि चालीसा का पाठ करने से भी कष्ट दूर होते है |

Sunday, March 27, 2016

निशुल्क कुंडली विवेचना

निशुल्क कुंडली विवेचना के लिए नीचे कमेंट में जन्म विवरण और समस्या लिखे 

घर से भाग कर शादी करने का योग

किसी जातक या जातिका के घर से भाग कर अर्थात माता पिता की मर्जी के बिना शादी करने के निम्न योग होते है
  1. जब कुंडली के छठे, सातवे और आठवे तीनो घरो में पापी ग्रह होते है
  2. चतुर्थ स्थान या चतुर्थेश पर किसी प्रथक्तावादी ग्रहों ( सूर्य, शनि, राहू ) का प्रभाव हो तो जातक घर से भाग कर शादी करता है

उदाहरण

यह एक ग्रेजुएट जातक की कुंडली है जिस ने घर से भाग कर अन्य जाति के व्यक्ति के साथ शादी की है | कुंडली में छठे भाव में पापी मंगल, सातवे भाव में पापी शनि और आठवे भाव में पापी राहु उपस्थित है | इसके अलावा चतुर्थ भाव पर शनि की दशम और राहु की नवम दृष्टि है

Saturday, March 26, 2016

केमदरुम दोष

चन्द्रमा से बनने वाला ये दोष अपने आप में एक बहुत बुरा दोष है यदि चंद्रमा से दुसरे और बारहवे दोनों स्थानों में कोई ग्रह नही हो तो केमद्रुम नामक दोष बनता है या फिर आप इसे इस प्रकार समझे चन्द्रमा कुंडली के जिस भी घर में हो, उसके आगे और पीछे के घर में कोई ग्रह न हो। इसके अलावा चन्द्रमा की किसी ग्रह से युति न हो या चंद्र को कोई शुभ ग्रह न देखता हो तो कुण्डली में केमद्रुम दोष बनता है। केमद्रुम दोष के संदर्भ में छाया ग्रह राहु केतु की गणना नहीं की जाती है। जिस भी जातक कुण्डली में यह दोष बनता हो उसे सजग हो जाना चाइये।
इस दोष में उत्पन्न हुआ व्यक्ति जीवन में कभी न कभी किसी न किस पड़ाव पर दरिद्रता एवं संघर्ष से ग्रस्त होता है। संसार में ऐसे कई व्यक्ति हुए है जिन्होंने बड़ी मेहनत करके पैसा कमाया लेकिन कुछ एक सालो बाद सब बर्बाद हो गया, तो यह इसी दोष कार्य का है। जीवन में सब कुछ वापिस ले लेना और फिर शून्य स्थिति में लाना भी इसी दोष का कार्य है। 
इसके साथ ही साथ ऐसे व्यक्ति अशिक्षित या कम पढा लिखे , निर्धन एवं मूर्ख भी हो सकते है। यह भी कहा जाता है कि केमदुम योग वाला व्यक्ति वैवाहिक जीवन और संतान पक्ष का उचित सुख नहीं प्राप्त कर पाता है। वह सामान्यत: घर से दूर ही रहता है। व्यर्थ बात करने वाला होता है कभी कभी उसके स्वभाव में नीचता का भाव भी देखा जा सकता है। 
केमद्रुम योग की शांति के उपाय

  1. सोमवार को पूर्णिमा के दिन अथवा सोमवार को चित्रा नक्षत्र के समय से लगातार चार वर्ष तक पूर्णिमा का व्रत रखें.
  2. सोमवार के दिन भगवान शिव के मंदिर जाकर शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध चढ़ाएं व पूजा करें.  भगवान शिव ओर माता पार्वती का पूजन करें. रूद्राक्ष की माला से शिवपंचाक्षरी मंत्र " ऊँ नम: शिवाय" का जप करें ऎसा करने से  केमद्रुम योग के अशुभ फलों में कमी आएगी.  
  3. घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करके नियमित रुप से श्रीसूक्त का पाठ करें.  दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उस जल से देवी लक्ष्मी की मूर्ति को स्नान कराएं तथा चांदी के श्रीयंत्र में मोती धारण करके उसे सदैव अपने पास रखें  या धारण करें.

Tuesday, March 22, 2016

कालसर्प योग

जब सभी ग्रह राहू और केतु के घेरे में होते है तो कालसर्प योग बन जाता है इस योग में सभी ग्रह राहू और केतु के बंधन में केद माने जाते है तथा ऐसा माना जाता है कि यह योग कुंडली में उपस्थित सभी उत्तम योगो को समाप्त  कर देता है जिस जातक की कुंडली में यह योग होता है उसके जीवन में सदा उदासीनता बनी रहती है और धनी व्यक्ति भी समय के फेर में आकर निर्धन बन जाता है कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण चीज की कमी रह जाती है यह जातक के स्वास्थ्य, धन, सम्मान, संतान, पत्नी सुख, माता-पिता के सुख में कमी में से कोई भी एक हो सकती है  जिनकी कुंडली में यह दोष होता है उनके खानदान में कम उम्र में मृत्यु और अकाल मृत्यु देखी गई है | पुश्तेनी सम्पति या तो नष्ट हो जाती है या कम प्राप्त हो पाती है | भरपूर शिक्षा लेकर भी उसका उपयोग नहीं हो पता | संतान से दुःख मिलता है और संतान निकम्मी या चरित्रहीन होती है |

ज्योतिष में १२ प्रकार का कालसर्प योग पाया जाता है जो इस प्रकार है
योग का नाम
राहु और केतु की कुंडली में स्थान
प्रभाव
अनन्त
राहु 1, केतु 7  
नास्तिकता, गले और मुह के रोग, पत्नी सुख में कमी
कुलिक
राहु 2, केतु 8
विद्या, धन व परिवार से परेशानी
वासुकी
राहु 3, केतु 9
दोस्त, भाई और मित्र के सुख में कमी
शंखपाल
राहु 4, केतु 10
माता-पिता, सास-ससुर के सुख में कमी, शरीर में विषेले घाव, दुखी और चिडचिडा
पदम्
राहु 5, केतु 11
संतान के सुख में कमी, विचारो में गड़बड़ी, अपयश
महापदम
राहु 6, केतु 12
हर काम में रुकावट, झूठे इल्जाम
कर्कोटक
राहु 7, केतु 1
उदरशूल, जननेन्द्रियो के रोग
तक्षक
राहु 8, केतु 2
आयु के कष्टकारक, अकाल मृत्यु का भय, मित्रो का अभाव
शंखनाद
राहु 9, केतु 3
भाग्य में रुकावट और धोखा
घातक
राहु 10, केतु 4
आजीविका में बाधाएं, हृदय और श्वास के रोग
विषाक्त
राहु 11, केतु 5
पेट दर्द, संतान की चिंता, लम्बी अवधि वाले रोग
शेषनाग
राहु 12, केतु 6
फिजूल के खर्च, कम नींद, सनकीपन

उपाय
  1. रांगे के 108 सर्प बनवाकर अमावस्या के दिन नदी के किनारे बैठकर एक एक सर्प हाथ में लेकर राहु मन्त्र का जाप करके जल प्रवाह करे |
  2. अमावस्या के दिन कांसे की थाली में देशी घी का हलवा बनाकर डाले और बीच में थोड़ी खाली जगह बनाकर उसमे देशी घी गरम करके डाले | फिर उस घी में दो चांदी (सोने का पानी चढ़ा हुआ हो ) के सर्प डाल दे | घी में अपनी छाया देखकर, थाली सहित तेज बहते पानी में प्रवाहित करदे |
  3. रोज रात को सोने से पहले और सोकर उठने के बाद, अपने सिर के ऊपर से मोर पंख कम से कम 5 बार ॐ नम: शिवाय का मन्त्र बोल कर घुमाये |



Friday, March 18, 2016

प्रेम विवाह के योग

जातक की जन्मकुंडली में पंचम भाव प्रेमी (प्रेमिका) को दर्शाता है और सप्तम भाव पति (पत्नी) को दर्शाता है | इसलिए अगर जन्मकुण्डली में निम्न योग पाए जाये तो जातक के प्रेम विवाह की सम्भावना होती है
  1. लग्नेश और पंचमेश का आपस में युति करना या एक दुसरे से दृष्टि सम्बन्ध बनाना, प्रेम विवाह को दर्शाता है
उदाहरण : इस कुंडली में लग्नेश (चन्द्र) और पंचमेश (मंगल) एक साथ पंचम भाव में युति कर रहे है इसलिए इस जातक ने प्रेम विवाह किया |


  1. पंचमेश और सप्तमेश का आपस में युति करना या दृष्टि सम्बन्ध बनाना भी प्रेम विवाह का योग बनाता है | यदि इनका राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह की सम्भावना बनती है |
उदाहरण : इस कुंडली पंचमेश (शनि) और सप्तमेश (गुरु) का राशि परिवर्तन योग प्रेम विवाह को दर्शाता है

  1. लग्नेश और सप्तमेश का पंचम भाव या एकादश भाव में बनने वाला योग भी प्रेम विवाह को दर्शाता है | यदि ये योग केन्द्र या त्रिकोण में बने तो भी प्रेम विवाह का योग बनता है |
  2. यदि पंचमेश और लाभेश ( एकादश भाव का स्वामी ) का योग लग्न में बने तो भी प्रेम विवाह की सम्भावना बनती है |